तीन राज्यों में मुख्यमंत्री चयन के लंबे इंतज़ार की भारी पीड़ा सहने के बाद जीते हुए भाजपा विधायकों में कश्मकश बढ़ गई है। नए और एक- दो बार के विधायक तो उत्साह में हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि जब राजस्थान में पहली बार का विधायक मुख्यमंत्री बन सकता है तो वे मंत्री क्यों नहीं बन सकते भला? छत्तीसगढ़ की बात बाक़ी दो राज्यों से अलग है क्यों कि वहाँ मुख्यमंत्री बने विष्णुदेव सीनियर हैं और उनके मंत्रिमंडल में शामिल होने में किसी को गुरेज़ नहीं होगा। मध्यप्रदेश और राजस्थान में परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं लग रहीं। ख़ासकर उन सब वरिष्ठों को जो किसी न किसी रूप में मुख्यमंत्री पद
और कहे नहीं भी जा रहे थे तो कम से कम खुद को इस पद के लायक़ मान तो रहे ही थे। कोढ़ में खाज ये हुई कि जिस संसद के वे सदस्य थे, वहाँ से पहले ही इस्तीफ़ा लिखवा लिया गया। अब करें तो क्या करें? नए मुख्यमंत्री के आगे सिर झुकाने से तो रहे! फिर उस हेकड़ी का क्या करें जिसे वर्षों के राजनीतिक जीवन में पाल पोस कर बड़ा किया है? मध्यप्रदेश में प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा, राकेश सिंह जैसे कई नाम हैं जो हो सकता है कि मंत्रिमंडल में शामिल होने से मना कर दें।
खैर वीडी शर्मा तो अभी पार्टी अध्यक्ष बने हुए हैं इसलिए उनकी आन तो बची रहेगी, लेकिन वह भी कब तक? बाक़ी वरिष्ठों का क्या होगा? कैलाश विजयवर्गीय तो जाने कब से मुख्यमंत्री की कुर्सी देख देखकर पसीना पोंछ रहे हैं। बेचारों का नंबर ही नहीं आ रहा। प्रह्लाद पटेल तो जोश- जोश में विधानसभा की सीढ़ियों तक को चूम आए थे, उनके दुख का तो कोई पारावार ही नहीं है। सोच रहे होंगे कि कोई पहले ही कह देता कि चुनाव ज़रूर लड़ रहे हो, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बनाएंगे। कम से कम केंद्र के पुराने पद के भरोसे इज्जत तो ढँकी रहती!
के दावेदार कहे जा रहे थे।