जम्मू की सीमा पर अब्दुलियां नाम का एक गांव है। 15 अप्रैल 2015 को इस गांव से दो युवक रेत लाने के लिए घर से निकले। वे नदी से रेत भर रहे थे। इसी बीच अचानक पानी का बहाव तेज हो गया और दोनों नदी में बह गए। जान बचाने की जद्दोजहद करते हुए वे तैरते रहे और जब नदी से बाहर निकले, तो पाकिस्तान की सीमा में पहुंच चुके थे।
दोनों युवक जैसे ही नदी से बाहर निकले तो उनके सामने एक पाकिस्तानी रेंजर खड़ा था। उसने दोनों को पकड़ लिया और फिर उन्हें सियालकोट की अंडरग्राउंड जेल भेज दिया गया। बस यहीं से शुरू हुआ उनकी यातनाओं का सफर… इन्हीं में से एक थे सोनू कुमार।
पाकिस्तान की जेल पहुंचने के बाद क्या-क्या हुआ? जेल से कैसे बाहर आए? कोर्ट में क्या हुआ? जेल के अंदर कैदियों की क्या स्थिति है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर ने सोनू कुमार से बातचीत की…
जेल में 13 दिन खड़ा रखा, गिरता तो जंजीर से बांधकर फिर खड़ा कर देते थे
10वीं तक पढ़े सोनू कुमार ने बताया कि जेल में 13 दिन तक मुझे खड़ा रखा गया। आंखों पर पट्टी बांधकर मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया था। जब मैं जमीन पर गिर जाता तो मुझे जंजीर से बांधकर फिर खड़ा कर देते थे। इस दौरान किसी ने मुझसे मारपीट नहीं की। सिर्फ इतना ही कहते थे कि तुम्हें खड़ा रहना होगा। लगातार 13 दिनों तक चले इस सिलसिले के बाद मुझे दूसरे तरीकों से प्रताड़ित करना शुरू किया।

मुझसे एक ही सवाल पूछते थे कि तुम्हें किस एजेंसी ने भेजा है? इंटेलिजेस? RAW?
मैं कहता- नहीं! हम गलती से आ गए हैं।
तो वे दोहराते- ‘नहीं…नहीं! हमें जानकारी मिली है कि आपने यहां पहले भी बमबारी की है। यहां आपके साथ कुछ और भी लोग हैं। मैं फिर कहता- आप लोग चेक करवा लीजिए, मेरे बारे में। हम यहां कभी नहीं आए और न ही कोई बम फोड़ा है, लेकिन वे फिर अपने सवाल दोहराने लगते।